निष्क्रियता की कहानी
Sat, 13 Sep 2014
पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय ने देश को अवाक कर देने वाले घोटालों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जिस तरह कठघरे में खड़ा किया वह कोई नई बात नहीं,लेकिन इस बार उन्होंने उन पर कहीं अधिक गंभीर आरोप लगाए हैं। इससे तो सारा देश अवगत है कि बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न तो 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले को रोक सके और न ही कोयला खदानों के आवंटन में बंदरबांट को, लेकिन पूर्व कैग प्रमुख की मानें तो वह आगाह करने के बाद भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। यह एक गंभीर आरोप है और इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मनमोहन सरकार में मंत्री रहे कमलनाथ भी विनोद राय के इस आरोप की पुष्टि कर रहे हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर प्रधानमंत्री ने उनकी शिकायती चिट्ठी की अनदेखी कर दी। कमलनाथ की इस स्वीकारोक्ति के बाद मनमोहन सिंह को अपनी सफाई में कुछ कहने के लिए आगे आना चाहिए। यह सही है कि इन दोनों ही घोटालों की सीबीआइ जांच हो रही है और उस पर सुप्रीम कोर्ट की भी निगाह है, लेकिन जब हर कोई पूर्व प्रधानमंत्री को ही कठघरे में खड़ा कर रहा है तब फिर उन्हें अपना पक्ष रखना ही चाहिए। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विगत में वह यह कह चुके हैं कि गठबंधन सरकार की मजबूरियों के चलते उनके हाथ बंधे हुए थे, क्योंकि ऐसी सरकार के मुखिया को इसकी इजाजत नहीं मिलती कि वह अपनी आंखों के सामने घपले-घोटाले होते देखते रहें। 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के मामले में ठीक ऐसा ही हुआ। मनमोहन सिंह इससे अच्छी तरह अंवगत थे कि 2जी स्पेक्ट्रम का मनमाने तरीके से आवंटन किया गया, लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों से वह मौन बने रहे। कोयला खदानों के मनमाने आवंटन में तो वह खुद भी भागीदार बने, क्योंकि उस समय कोयला मंत्रालय का प्रभार भी उनके पास था। पूर्व कैग प्रमुख ने मनमोहन सरकार पर एक और गंभीर आरोप यह भी लगाया है कि उनका फोन टैप किया जा रहा था। अगर यह आरोप सही है तो इससे अधिक शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता कि केंद्रीय सत्ता एक संवैधानिक संस्था के प्रमुख की जासूसी करे।
किसी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वाकई कैग प्रमुख की ताक-झांक की जा रही थी? इसी के साथ खुद विनोद राय को भी यह बताना चाहिए कि जब महा घोटाले हो रहे थे और प्रधानमंत्री कथित तौर पर निष्क्रिय बने हुए थे तो उन्होंने आगे बढ़कर यह शोर क्यों नहीं मचाया कि देश के साथ अनर्थ हो रहा है? यह ठीक नहीं कि प्राकृतिक संसाधनों की ऐसी लूट और अन्य अनेक घोटालों पर आगे बढ़कर देश को चेताने के बजाय कैग प्रमुख अपने दायरे में रहकर लिखा-पढ़ी करने तक सीमित रहे। आखिर इससे देश को जो नुकसान हुआ उससे तो नहीं ही बचा जा सका। यह ठीक नहीं कि नौकरशाह सेवानिवृत होने के बाद कहीं अधिक सक्रियता दिखाएं। क्या कारण है कि वह अपेक्षित सक्रियता उस समय नहीं दिखा पाते जिस समय उसकी ज्यादा जरूरत होती है? यह सवाल जितना पूर्व कैग प्रमुख पर लागू होता है उतना ही उन अन्य अनेक लोगों पर भी जो किताबों के जरिये मनमोहन सिंह के शासन काल की खामियों को उजागर करने में लगे हुए हैं।
(मुख्य संपादकीय)
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